नरेन्द्र कोहली की महासमर श्रृंखला की दूसरी कड़ी है अधिकार । जहाँ बंधन  नामक इस श्रृंखला के पहले खण्ड के केंद्र-बिंदू देवव्रत भीष्म थे, वहीँ इस पुस्तक की रचना लेखक ने पाण्डवों व विशेषतः धर्मराज युधिष्ठिर की धर्मपरायणता और अनृशंसता को केंद्र में रख कर की है।

कथा का आरंभ गांधारी व धृतराष्ट्रपुत्रों की दासियों द्वारा कुंती और पांडवों की अवमानना से किया गया है, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि हस्तिनापुर के राज्य व व्यवस्था पर अपना आधिपत्य जमाए बैठा धृतराष्ट्र व उसका परिवार किसी भी प्रकार सिंहासन पर पाण्डु-पुत्रों के न्यायोचित अधिकार को स्वीकार करने के लिए प्रस्तुत नहीं हैं। भीम को विष देकर उसका वध करने के दुर्योधन व उसके मित्रों के प्रयत्न से पाण्डवों के विरुद्ध उनके षड्यंत्रों का आरंभ भी इसी खण्ड से हो जाता है।

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महासमर के इस भाग में ही द्रोण, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, द्रुपद व पांचालों का प्रवेश भी हो जाता है। भीष्म द्वारा द्रोणाचार्य को कुरुओं के गुरु के रूप में नियुक्त किए जाने के पश्चात् कुरु राजकुमारों के प्रशिक्षण की अवधि के दौरान घटित प्रसंगों – जैसे कि द्रोण द्वारा गुरु-दक्षिणा में एकलव्य का अंगूठा मांगे जाने, अथवा अपनी अनन्य एकाग्रता का परिचय देते हुए अर्जुन द्वारा लकड़ी के पक्षी की आँख का लक्ष्यवेध करने – का भी उपयुक्त वर्णन किया गया है। रंगभूमि में कुन्ती को कर्ण से अपने संबंध का बोध हो जाने वाली घटना के तर्कसंगत एवं सजीव चित्रण को इस रचना का सबसे अविस्मरणीय प्रसंग कहना शायद गलत नहीं होगा।

पाण्डवों के मातुल, यादवश्रेष्ठ अक्रूर के हस्तिनापुर में आगमन के फलस्वरूप धृतराष्ट्र को न चाहते हुए भी युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करना पड़ता है। महाभारत के महानायक कृष्ण का प्रवेश भी इसी खण्ड में हो जाता है। पाण्डवों – और विशेषतः अर्जुन – के साथ कृष्ण की घनिष्टता, धर्म-चर्चा व सम्पूर्ण जम्बूद्वीप में एक अखंड धर्मराज्य की संस्थापना करने की उनकी परिकल्पना का आरंभ भी यहीं से होता है।

महासमर 2 अधिकार नरेन्द्र कोहली पुस्तक समीक्षा

विवेचनात्मक दृष्टिकोण से देखा जाए तो बंधन  की तुलना में अधिकार  की कथावस्तु अधिक सूक्ष्म प्रतीत होती है। इस रचना में गति पकड़ता घटनाक्रम, बहुत ही सटीक और तर्कसंगत ढंग से भावी घटनाओं की पृष्ठभूमि तैयार करता है। 21 अध्यायों वाली इस रचना का प्रत्येक पृष्ठ पाठकों को महाभारत के अपने ज्ञान का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए बाध्य कर देता है।

अमेया का मूल्यांकन:
4.8/5

श्रीमान् कोहली ने अत्यंत दक्षतापूर्वक भीष्म को पृष्ठिका में धकेल कर युधिष्ठिर और विदुर जैसे धर्म-विचारकों को इस खण्ड के नायकों के रूप में प्रस्तुत किया है। 400 पृष्ठों के साथ अधिकार  किसी ग्रंथ जैसा न लग कर, किसी उपन्यास जैसा ही लगता है। महासमर की पहली ही कड़ी के समान, इस भाग में भी संस्कृतनिष्ठ परन्तु सरल हिन्दी का उपयोग किया गया है। पुस्तक के अंत में इस खण्ड में प्रस्तुत सभी छोटे-बड़े पात्रों की एक सूची भी दी गई है। अधिकारों की व्याख्या करने वाले इस खण्ड में न केवल पाठकों को अपने वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष की प्रतिध्वनियाँ सुनाई देंगी, बल्कि उनके समक्ष सतोगुणी राजनीति व तमोन्मुख-रजोगुणी राजनीति के भेद भी अधिक स्पष्ट होने लगेंगे। अधिकारों के वास्तविक अर्थ एवं महत्त्व को समझने के लिए इच्छुक और पाण्डवों के आरंभिक संघर्ष के विषय में अधिक जाने के लिए व्यग्र पाठकों को इस रचना को अवश्य पढ़ना चाहिए।

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